उमर का तक़ाज़ा

पलक झपकते साँसों का कारवाँ गुज़र गया,

अब लगता है ऐसे जैसे मेरा वक़्त ठहर गया,

रौशनी भी अब आँखों से कहीं दूर हुई जाती है,

ज़िंदगी तुझे देखकर बस हँसी सी आ जाती है।

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शिकार मेरा कारोबार

इन सुनहरे जल तरंगों में छपछपाने से,
मेरे भीतर का कलाकार उभर आता है,
मलाल इस कलाकारी का अक्सर तब होता है,
मेरी शिकार मछलियों को मेरा कारोबार नज़र आता है!

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नया आसमान

अबके सावन का ये अहसास है,
खुला सा इक आसमाँ पास है,
अपने पंखों पे भी विश्वास है,
बस एक नए सूरज की तलाश है!

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Nature’s Beauty

इन धागों सी बारीकी से जिसका बदन हो सजा,

गुरुर उस पे ना आये तो और क्या….

आसमां बादल और किरणों से अठखेलियां करे,

अब पांव जमीं पे भी हैं तो क्या….

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चोंच लड़ाईं

कभी ग़ैरों से और कभी अपनों से,

कभी मुक़द्दर से कभी सिकंदर से,

कभी जर्रों से तो कभी दर्रों से,

कभी पक्ष से और कभी विपक्ष से,

कभी नेता से तो कभी अभिनेता से,

कभी अफ़सर से और कभी दफ़्तर से,

कभी रौशनी से तो कभी अंधेरों से,

कभी तख़्त से और कभी ताज से,

कभी अमीरों से तो कभी ग़रीबों से,

कभी ऊँच से और कभी नीच से,

कभी नदियों से और कभी पहाड़ों से,

मैं और मेरे हमवतन हमेशा मशगूल हैं,

कभी पंजा तो और कभी चोंच लड़ाने में।

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Aगस्त की 15

जाने वो कैसा जुनूँ था और थे कैसे वो लोग,

मुद्दतों डँटे रहे बिना चखे आज़ादी का भोग,

ख़ुद्दारी ने सपने दिखाये आज़ाद ख़यालातों के,

चाहत थी बस वतन परस्ती उनके सवालतों के,

अब वक़्त भी हमारा है और आज़ाद है हर आवाज़,

जो हालात हैं अब क्या ये है आज़ादी का आग़ाज़,

कुछ कोशिशें अब भी लगती बाक़ी है,

आज वतन में दोस्तों आज़ादी की झाँकी है।

Life like संगीत

बचपन ही से सुरों ने,

कुछ एैसा संगीत है रचा,

मासूमियत को ताक पे रक्खा,

लड़कपन तक वो भी ना बचा,

हरकतें नायब थी उन धुनों की,

जवानी उस्ताद थी उन गुरों की,

मूर्कियों ने अंजाने सुरों को मिलाया,

हमने भी बदनामी से नाम कमाया,

अब कड़ीयाँ कुछ इस क़दर जुड़ि हैं,

मानो सारी राहें बस संगीत को मुड़ी हैं।

हम बच्चे हैं

जब तक हम बच्चे हैं,
कहीं कहीं तो सच्चे हैं,
चाहे अनुभव में कच्चे हैं,
पर भावना में सच्चे हैं,
और बहुतों से अच्छे हैं,
लोगों को लगते फच्चे हैं!

आज का सच

कहते रहे इस वजूद से हम,

ज़िंदगी भर कई क़िस्से,

कुछ तो लगते पूरे सच से,

और कुछ में कई हिस्से,

अपना ही सच क्यूँ छिपा रहे,

झूठी कहानियाँ क्यूँ बना रहे,

किस बात की दिलाशा दिला रहे,

इक दिन सच तो कहना है,

फिर आज क्यूँ चुप रहना है।

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