जाने वो कैसा जुनूँ था और थे कैसे वो लोग, मुद्दतों डँटे रहे बिना चखे आज़ादी का भोग, ख़ुद्दारी ने सपने दिखाये आज़ाद ख़यालातों के, चाहत थी बस वतन परस्ती उनके सवालतों के, अब वक़्त भी हमारा है और आज़ाद है हर आवाज़, जो हालात हैं अब क्या ये है आज़ादी का आग़ाज़, कुछ कोशिशेंContinue reading “Aगस्त की 15”